राजस्थान में प्रजामंडल के महत्वपूर्ण तथ्य

प्रजामण्डल का अर्थ ( Praja Mandal Meaning  )

  • प्रजा का मण्डल (संगठन)। 1920 के दशक में ठिकानेदारों और जागीरदारों के अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ रहे थे। इसी के कारण किसानों द्वारा विभिन्न आंदोलन चलाये जा रहे थे। साथ ही गांधी जी के नेतृत्व में देश में स्वतंत्रता आन्दोलन भी चल रहा था। इन सभी के कारण राज्य की प्रजा में जागृती आयी और उन्होंने संगठन(मंडल) बनाकर अत्याचारों के विरूद्ध आन्दोलन शुरू किया जो प्रजामण्डल आंदोलन कहलाये।
  • इन आन्दोलनो का मुख्य उद्देश्य रियासती शासन के अधीन उत्तरदायी शासन प्राप्त करना था। उत्तरदायी शासन से तात्पर्य संघ बनाने, भाषण देने आम सभा करने और जुलूस निकालने आदि की स्वतंत्रता दी जाये।
  • राजस्थान में प्रजामंडल आंदोलनों को स्थापित करने का बीज सुभाष चंद्र बॉस द्वारा आयोजित किया गया था । जब 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में जोधपुर की यात्रा की थी।
  • इसकी पृष्ठभूमि राजस्थान राज्यों में चल रहे कृषक आन्दोलन थे। कृषक आन्दोलन उस व्यापक असन्तोष के अंग थे, जो प्रचलित राजनीतिक और आर्थिक ढांचे में विद्यमान था। कृषकों ने विभिन्न आन्दोलनों के माध्यम से उस समय के ठिकानेदारों और जागीरदारों के अत्याचारों को तथा कृषि संबंध में आये विचार को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • जागीरदारी व्यवस्था उस पैतृकवादी स्वरुप को छोड़कर शोषणात्मक स्वरुप ले चुकी थी। प्रचलित व्यवस्था में असन्तोष व्यापक था। उनके असन्तोष को मूर्तरूप देने के लिए संगठन की आवश्यकता थी। 1919 ई. में राजस्थान  सेवा संघ के स्थापित हो जाने से जनता की अभिव्यक्ति के लिए एक सशक्त माध्यम मिल गया।
  • 1920 से 1929 तक राजस्थान में होने वाले कृषक आन्दोलन का नेतृत्व इसी संघ के द्वारा किया गया था

राजस्थान में प्रजामण्डल आन्दोलन ( Praja Mandal movement in Rajasthan )

  • जयपुर प्रजामण्डल (1931)
  • बूंदी प्रजामण्डल (1931)
  • मारवाड़ प्रजामण्डल (1934)
  • कोटा प्रजामण्डल (1938)
  • धौलपुर प्रजामण्डल (1936)
  • बीकानेर प्रजामण्डल (4 अक्टूबर 1936)
  • शाहपुरा (18 अप्रेल 1938)
  • मेवाड़ प्रजामण्डल (24 अप्रेल 1938)
  • अलवर प्रजामण्डल (1938)
  • भरतपुर प्रजामण्डल (मार्च 1938)
  • सिरोही प्रजामण्डल (22 जनवरी 1939)
  • करौली प्रजामण्डल (अप्रेल 1938)
  • किशनगढ़ प्रजामण्डल (1939)
  • कुशलगढ़ प्रजामण्डल (अप्रेल 1942)
  • बांसवाड़ा प्रजामण्डल (1943)
  • डूंगरपुर प्रजामण्डल (26 जनवरी 1944)
  • प्रतापगढ़ प्रजामण्डल (1945)
  • जैसलमेर प्रजामण्डल (15 दिसम्बर 1945)
  • झालावाड़ प्रजामण्डल (25 नवम्बर 1946)

Jaipur Praja Mandal ( जयपुर प्रजामण्डल )

  • स्थापना कपूरचंद पाटनी की अध्यक्षता में 1931 में गठित पर्याप्त जन सहयोग नही मिलने के कारण ये प्रजामण्डल लगभग 5 वर्षो तक निष्क्रिय रहा जो राजस्थान का प्रथम प्रजामंडल था।
  • पुर्नगठन 1936 ईस्वी में सेठ जमनालाल लाल बजाज व हीरालाल के प्रयासों से चिरंजीलाल मिश्र की अध्यक्षता में पुनर्गठन किया गया जमनालाल लाल बजाज का जन्म 4 नवंबर 1889 को सीकर जिले के काशी का बांस नामक गाँव मे हुआ। राजस्थान के प्रथम मनोनीत मुख्यमंत्री बने, भारत छोड़ो आन्दोलन मे भाग न लेकर जयपुर के प्रधानमंत्री मिर्जा स्माईल से समझौता किया जिसे Gental Man Agreement कहा जाता है
  • इस नवगठित प्रजामण्डल ने 1937 से कार्य करना प्रारंभ कर दिया, 1938 ईस्वी में जमनालाल बजाज इस प्रजामण्डल के अध्यक्ष बने। 8 से 9 मई 1938 को इस प्रजामण्डल का प्रथम अधीवेशन हुआ।
  • हीरालाल शास्त्री जी के प्रयासों से शेखावाटी किसान सभा का विलय जयपुर प्रजामण्डल में कर दिया गया। प्रलय प्रतिक्षा नामों नमः शास्त्री जी का लोकप्रिय गीत था
  • Jaipur Public Council Act of 1939 ( जयपुर लोक परिषद अधिनियम )
  • इस अधिनियम में यह प्रावधान किया गया के जो भी गैर सरकारी संस्थाएं है उनका सरकार में पंचीयन करवाना आवश्यक है 1 फरवरी 1939 को जयपुर प्रजामण्डल को अवैध घोषित कर जमनालाल बजाज का जयपुर में प्रवेश निषेध किया गया , जमनालाल बजाज तथा अन्य सभी मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया
  • बंदी नेताओं के साथ सरकार का व्यवहार अभी भी अनुचित ही था। जमनालाल बजाज को मोरा सागर डाक बंगले में पढ़ने के लिये अखबार तक नही दिया जाता था 1 फरवरी 1939 को प्रजामण्डल ने सत्याग्रह प्रारंभ किया जिसका नेतृत्व चिरंजीलाल मिश्र कर रहे थे
  • स्त्रियों ने भी अपना सहयोग दिया , हीरालाल शास्त्री जी की पत्नी तथा दुर्गा देवी शर्मा का नाम इन मे उल्लेखनीय है हीरालाल शास्त्री की घोषणा के अनुसार 12 मार्च 1939 को “जयपुर दिवस” मनाया गया। सरकार द्वारा प्रजामण्डल को मान्यता देने व गाँधी के निर्देश 18 मार्च 1939 को सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया।

Jodhpur Prajamandal ( जोधपुर प्रजामंडल )

  • मरवाड़ प्रजामण्डल 1934 मे भंवरलाल सरार्फ ,अभयमल जैन एवम अचलेश्वर प्रसाद द्वारा स्थपना । मारवाड़ लोक परिषद 16 मई 1938 रणछोड़ दास गट्टानी(अध्यक्ष),अभयमल जैन (महामंत्री)भीमराज पुरोहित, जयनारायण व्यास ,अचलेश्वर प्रसाद शर्मा द्वारा स्थापना ।
  • 1920- चांदमल सुराणा द्वारा मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना।
  • 1921- सेवा संघ द्वारा अंग्रेजी तौल चालू करने का विरोध ।
  • 1922-24- राज्य से मादा पशुओं की निकासी का विरोध।
  • 1924 मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना, प्रधानमंत्री सर सुखदेव प्रसाद को हटाने हेतु आंदोलन
  • 1928 मारवाड़ लोक राज्य परिषद के अधिवेशन पर रोक।देशद्रोह के जुर्म में जयनारायण व्यास को 6 वर्ष की कैद।
  • 1931 व्यासजी व अन्य साथी जेल से रिहा।
  • 1937 व्यासजी मारवाड़ से निष्कासित।अचलेश्वर प्रसाद को राजद्रोह के अपराध में ढाई वर्ष की सजा।
  • 16 मई1938 मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना
  • 1899 में जन्मे जयनारायण व्यास, राजस्थान के लोकनायक ,शेर, ए राजस्थान मास्टर जी ने 1938 में जोधपुर प्रजामंडल का गठन किया गया।
  • फरवरी 1939 व्यासजी पर से प्रतिबंध हटा।व्यासजी राज्य सलाहकार मण्डल में शामिल।।
  • 1941 जोधपुर नगरपालिका के चुनाव।परिषद को बहुमत।व्यसजी अध्यक्ष निर्वाचित।
  • मई 1942 सरकार व परिषद में तनाव।व्यासजी का इस्तीफा।परिषद द्वारा प्रधानमंत्री सर डोनाल्ड फील्ड को हटाने के लिए आंदोलन। 26 मई व्यसजी गिरफ्तार।परिषद का सत्याग्रह।
  • जून 1942 सत्याग्रहियों द्वारा जेल में दुर्व्यवहार के विरुद्ध भूख हड़ताल। 19 जून1942 बालमुकुन्द बिस्सा की मृत्यु।
  • अगस्त 1942 लोक परिषद भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल।
  • भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल में बंद इन्ही की पेरणा से डीडवाना निवासी बालमुकंद बिस्सा ने जेल में सुधार के लिए भूख-हाफत 8 की जिससे 19 जून 1942 को इनकी मृत्यु ही गई इसलिये इन्हें राजस्थान का जतिन दास कहा जाता हैं।
  • सितम्बर1945 पण्डित नेहरू जोधपुर आये। नेहरू जी की सलाह पर सर डोनाल्ड फील्ड की जगह सी एस वैंकटाचरी प्रधानमंत्री नियुक्त।
  • 1947 महाराजा उम्मेदसिंह का देहांत। हनुमंतसिंह महाराजा बने। 13 मार्च 1947 डाबड़ा किसान सम्मेलन पर हमला । चुन्नीलाल शर्मा व 4 किसान शहीद। मथुरादास माथुर, द्वारका दास पुरोहित, नृसिंह कछवाहा आदि घायल। अगस्त 1947 महाराजा जोधपुर की महाराजा धौलपुर के मार्फ़त जिन्ना से मुलाकात।
  • अक्टूबर 1947 वैंकटाचार्य के स्थान पर महाराजा अजीतसिंह प्रधानमंत्री। दिसम्बर1948 में वी पी मेनन व महारजा के बीच जोधपुर के राजस्थान में शामिल होनेके सम्बंध में वार्ता। महाराजा की सहमति । 30 मार्च 1949 सरदार पटेल द्वारा वृहद राजस्थान का जयपुर में उदघाटन।जोधपुर राज्य का अस्तित्व समाप्त।

Mevad Prajamandal ( मेवाड प्रजामंडल )

  • उदयपुर में प्रजामंडल आंदोलन की स्थापना श्री माणिक्य लाल वर्मा ने की थी मेवाड़ में प्रवेश पर रोक के कारण उन्होंने अजमेर में रहकर प्रजामंडल की स्थापना पूरी योजना बनाई थी
  • भूरेलाल भैया, हीरालाल कोठारी, रमेश चंद्र व्यास, भवानी शंकर वैद्य आदि के सहयोग से उदयपुर में 24 अप्रैल 1938 को श्री बलवंत बलवंत सिंह मेहता के अध्यक्षता में मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना हुई
  • उदयपुर सरकार द्वारा मेवाड़ प्रजामंडल को 24 सितंबर 1938 को गैरकानूनी घोषित कर दिया परंतु उसी दिन नाथद्वारा में निषेधाज्ञा के बावजूद कार्यकर्ताओं द्वारा जुलूस निकाला गया था
  • भूरेलाल बया को सड़क केले मेवाड़ का काला पानी में नजरबंद किया गया था गिरफ्तार करके, विजयदशमी के दिन प्रजामंडल कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह प्रारंभ किया क्रांतिकारी रमेश चंद्र व्यास को पहला सत्याग्रह बनकर गिरफ्तार होने का श्रेय प्राप्त है
  • श्री माणिक्य लाल वर्मा ने मेवाड़ का वर्तमान शासन नामक पुस्तिका छपवाकर मेवाड़ में वितरित की थी लोगों को जागृति लाने के लिए मेवाड़ प्रजामंडल मेवाड़ वासियों से एक अपील नामक पर्चे बांटे थे 24 जनवरी 1939 को मेवाड़ माणिक्य लाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी वर्मा एवं पुत्री प्रजामंडल आंदोलन में भाग लेने के कारण राज्य से निष्कासित कर दिया गया था
  • मेवाड़ प्रजामंडल में बेकार एवं बेल्ट प्रथा के विरुद्ध अभियान चलाया गया और मेवाड़ सरकार को आंदोलनकारियों के सामने झुकना पड़ा और मेवाड़ की पहली नैतिक विजय है
  • मेवाड़ प्रजामंडल में कांग्रेस द्वारा 9 अगस्त 1942 में शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रुप से भाग लिया था और 20 अगस्त 1942 को प्रजा मंडल की कार्यसमिति ने मेवाड़ राणा को पत्थर से चेतावनी दी कि यदि 24 घंटे के भीतर महाराणा ब्रिटिश सरकार के संबंध विच्छेद नहीं करते तो जन आंदोलन प्रारंभ किया जाएगा
  • 3 मार्च 1947 को मेवाड़ के भावी संविधान की रूपरेखा की घोषणा की गई इसके अनुसार 46 सदस्यों की धारा सभा में 18 स्थान विशिष्ट वर्ग हेतु सुरक्षित किए गए थे और 28 स्थान संयुक्त चुनाव प्रणाली द्वारा जनता से चुने जाने थे 23 मई 1947 को मेवाड़ के वैज्ञानिक सलाहकार के मुंशी द्वारा संविधानिक सुधारों की नई प्रस्तुति दी गई थी जिसमें 56 सदस्य विधान सभा के गठन का प्रावधान था
  • 6 मई 1948 को महाराणा ने अंतिम सरकार बनाने एवं विधानसभा निर्वाचन के बाद उत्तरदाई सरकार का गठन करने की घोषणा की परंतु इसी दौरान 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर राज्य का राजस्थान में विलय हो गया इस प्रकार मेवाड़ प्रजामंडल के प्रयासों के आगे वही सरकार को झुकना पड़ा और धीरे-धीरे उत्तरदाई शासन की स्थापना के कदम उठाने पड़े

Shahpura Prajamandal  ( शाहपुरा प्रजामंडल )

  • शाहपुरा के शासक उम्मेदसिंह के समय राज्य में राष्ट्रीय आंदोलन चला।  श्री माणिक्यलाल वर्मा के सहयोग से 18 अप्रैल,1938 को श्री रमेशचन्द्र औझा, लादूराम व्यास व अभयसिंह डांगी के द्वारा शाहपुरा प्रजामंडल की स्थापना की गई।
  • 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय प्रजामण्डल ने शासक को अंग्रेजों से संबंध तोड़ने की माँग की।  रमेशचंद्र ओझा, लादूराम व्यास व लक्ष्मीनारायण काँटिया को बंदी बनाया गया।  शाहपुरा के प्रो. गोकुललाल असादा पहले से ही अजमेर में बंदी थे।
  • 1946 में बन्दियों को रिहा कर शाहपुरा के शासक सुदर्शनदेव ने गोकुललाल असावा की अध्यक्षता में नया विधान तैयार कराया, जिसे 14 अगस्त,1947 को राज्य में लागू कर दिया गया व असावा के नेतृत्व में लोकप्रिय सरकार की स्थापना की।
  • शाहपुरा राज्य की प्रथम देशी रियासत थी, जिसमे 14 अगस्त, 1947 को जनतांत्रिक व पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई।  27 सितंबर, 1947 को राजाधिराज सुदर्शनदेव ने गोकुल लाल असावा को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
  • पहले शाहपुरा व किशनगढ़ को अजमेर में मिलाने का निर्णय किया गया था, किंतु जनता के विरोध के कारण उसे रद्द कर 25 मार्च, 1948 में शाहपुरा का विलय संयुक्त राजस्थान में हो गया।

Sirohi Prajamandal  ( सिरोही प्रजामण्डल )

  • 1934 में वृद्धिशंकर त्रिवेदी द्वारा सिरोही प्रजामंडल स्थापित किया गया लेकिन यह निष्क्रिय था।  सिरोही के कुछ कार्यकर्त्ताओं ने बाद में बंबई में 16 अप्रैल 1935 को ‘प्रवासी सिरोही प्रजामंडल’ की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य सिरोही के शासक स्वरुप रामसिंह की छत्रछाया में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था।
  • कुछ समय पश्चात 22 जनवरी, 1939 को गोकुलभाई भट ने सिरोही में प्रजामंडल की स्थापना की और आंदोलन चलाया, जिसमें कार्यकर्त्ता बंदी बनाए गए।  गोकुलभाई भट्ट इस सिरोही प्रजामंडल के अध्यक्ष थे। गोकुलभाई भट्ट को राजस्थान का गाँधी भी कहा जाता है।
  • 1942 की अगस्त क्रांति में भी सिरोही में आंदोलन चला। 1946 में तेजसिंह सिरोही की गद्दी पर बैठा, किंतु जनता द्वारा आंदोलन करने पर अभयसिंह को गद्दी पर बैठाया गया।
  • 5 अगस्त, 1949 को आबू पर्वत सिरोही को वापस लौटा दिया गया और मंत्रिमण्डल में प्रजामण्डल का प्रतिनिधि जवाहरमल सिंधी को शामिल किया गया।

Bikaner Prajamandal  ( बीकानेर प्रजामंडल )

  • 1913ई. मे बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने बीकानेर राज्य के लिए ‘प्रतिनिधि सभा’ का गठन किया।महाराजा गंगा सिंह ने बीकानेर राज्य मे प्रतिनिधि सभा (रिप्रेजेण्टेटिव असेंबली) की स्थापना की घोषणा कर अगले वर्ष उसके प्रथम अधिवेशन का उद्घाटन किया।
  • उस समय इसमे कुल 35 सदस्य थे। 1917 ई.मे इसे ‘विधानसभा’ का नाम दिया गया। 1937 ई. तक इसकी सदस्य संख्या बढ़कर 45 कर.दी गई थी। इस प्रकार बीकानेर राजस्थान का पहला राज्य था जिसनें बीकानेर मे प्रजामण्डल आंदोलन को आगे से बढा़कर संरक्षण प्रदान किया।
  • डी. आर. मानकर ने लिखा-भारत के लिए संघात्मक संविधान के सर तेज बहादुर सप्रू के प्रस्ताव को स्वीकार था।
  • डाॅ. करणीसिंह लिखते हैं कि बीकानेर गर्व के साथ कह सकता हैं कि यह राजपूताना मे प्रथम राज्य था।
  • 1928ई. मे महाराजा ने ग्राम पंचायतों को दीवानी, फौजदारी और प्रबंध संबंधी निश्चित अधिकार प्रदान किये। 1937 ई. मे महाराजा ने अपने राज्य मे म्युनिसिपल बोर्ड और डिस्टि्क्ट बोर्ड कायम किये। महाराज गंगासिंह जी प्रथम भारतीय नरेश थे जिन्होंने प्रिवीपर्स तथा सिविल लिस्ट पद्धति चालू की।
  • 4 जुलाई 1932 ई.से बीकानेर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम आरंभ कर दिया, जो मार्शल लाॅ की ही भांति कठोर था। 4अक्टूबर,1936 को बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की मेघाराम वैध को अध्यक्ष बनाया।
  • मार्च, 1937 मे सरकार ने प्रजामण्डल के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। 22 मार्च 1937 को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के तत्वाधान मे दिल्ली मारवाड़ी लाईब्रेरी मे एक सभा का आयोजन किया। मछाराम ने ‘कलकत्ता मे बीकानेर राज्य प्रजामण्डल’ की स्थापना की तथा ‘बीकानेर की थोथी पोथी’ नामक पुस्तिका प्रकाशित की।
  • 22 जुलाई,1942 को रघुवरदयाल गोयल के नेतृत्व मे व्यापक जनाधर वाली ‘प्रजा परिषद’की स्थापना हुई। 3 फरवरी,1943 को महाराजा गंगासिंह का निधन हो गया।उनका पुत्र सार्दूलसिंह बीकानेर का राजा हुआ। उसने भी दमन की नीति जारी रखी 21 जून ,1946 को महाराजा ने घोषणा की राज्य मे उतरदायी शासन की स्थापना की जायेगी
  • बीकानेर मे चना निकासी विवाद: 1947ई.
  • महाराजा सार्दूलसिंह ने 22 जुलाई,1946 को पं. जवाहरलाल नेहरु को एक पत्र लिखा कि तिरंगा झण्डा काग्रेस का झण्डा हैं। बीकानेर राज्य एक स्वतंत्र ईकाई हैं। इस पर 12 अगस्त ,1946को नेहरू ने महाराजा को पत्र लिखकर उनके विचारों से अपनी सहमति व्यक्त की।
  • अमर शहीद जीनगर बीरबल सिहं ढालिया: 30जून 1946 को हमेशा हमेशा के लिए अपनी आंखे मूंद कर ली। 1 जुलाई 1946 को शहीद के पार्थिव शरीर का जुलूस निकाला। जिसमे.आजाद हिंद फौज के कर्नल अमरसिहं तिरंगा झण्डा लिये थे, बीकानेर प्रजामंडल ने 17 जुलाई, 1946 को बीरबल दिवस मनाया।

Praja mandal Movement Question  and Quiz

1. मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापनाकी योजना कहां बनाई गई और इसकी स्थापना कब हुई

उत्तर मेवाड़ प्रजामंडल की स्थापना की योजना माणिक्य लाल वर्मा ने अजमेर में रहकर बनाई और इसकी स्थापना 24 अप्रैल 1938 को श्री बलवंत सिंह मेहता की अध्यक्षता में की

Join Telegram Channel (2.4K+) Join Now

2. माणिक्य लाल वर्मा ने मेवाड़ के लोगों में जागृति लाने हेतु क्या क्या प्रयास किए

उत्तर श्री माणिक्य लाल वर्मा ने मेवाड़ का वर्तमान शासन नामक पुस्तक छपवाकर वितरित करवाई जिसमें मेवाड़ के व्याप्त अव्यवस्था एवं तानाशाही की आलोचना की गई उन्होंने मेवाड़ प्रजामंडलवासियों मेवाड़ से एक अपील नामक पर्चे भी बंट

3. डूंगरपुर में स्थापित विभिन्न संस्थाओं के बारे में बताइए

उत्तर डूंगरपुर में भोगीलाल पांडया व गौरी शंकर उपाध्याय ने वागड़ सेवा मंदिर बाबा लक्ष्मण दास व श्री शोभा लाल गुप्ता ने सागवाड़ा में हरिजन आश्रम माणिक्य लाल वर्मा ने सागवाड़ा खांदलाई आश्रम श्री भोगीलाल पंड्या ने सेवा संघ की स्थापना की वही श्री राम नारायण चौधरी ने हरिजन सेवा हेतु राजपूताना हरिजन सेवा संघ की स्थापना की श्री गौरी शंकर उपाध्याय द्वारा खादी के प्रसार के लिए सेवाश्रम नामक संस्था स्थापित की गई

4. रास्तापाल कांड के बारे में स्पष्ट कीजिए

उत्तर डूंगरपुर राज्य द्वारा सेवा संघ द्वारा संचालित पाठशालाओं को बंद करने के अभियान के दौरान 19 जून 1947 को राज्य की पुलिस ने रास्तापाल में मार मार कर नाना भाई खांट की हत्या कर दी 21 जून 1947 को भील बालिका विरांगना कालीबाई अपनी श्रद्धा गुरु सगा भाई को बचाने के कारण पुलिस की गोली की शिकार होकर शहीद हो गई श्री नानाभाई खान व काली बाई का दाह संस्कार गैब सागर के पास सुरपुर ग्राम में किया गया वहां इन की मूर्ति विद्यमान है

5. बांसवाड़ा प्रजामंडल ( Banswara Praja mandal )आंदोलन विस्तार से बताइए

उत्तर बांसवाड़ा में आदिवासियों में हरिजनों में राजनीतिक जागृति रचनात्मक कार्यों के माध्यम से हुई

प्रमुख नेता बाबा लक्ष्मण दास श्री धूलजी भाई श्री मणि शंकर नागर भूपेंद्रनाथ त्रिवेदी श्री चिमनलाल लाल मालोत

श्री चिमनलाल मालोत ने 1930 में राजनीतिक चेतना का प्रचार करने के उद्देश्य से शांति सेवा कुटीर नामक संस्था की स्थापना की व सर्वोदय वाहक नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया

27 मई 1945 को बांसवाड़ा प्रजामंडल की स्थापना हुई अध्यक्ष मंत्री धूल जी भाई भाव सर

1946 में श्री भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी जी ने मुंबई से आकर बांसवाड़ा की राजनीति में प्रवेश किया जिससे प्रजामंडल की शक्ति व प्रभाव में असाधारण वृद्धि हुई

श्री भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी ने मुंबई एक प्रेस स्थापित की संग्राम नमक सप्ताहिक पत्रिका प्रकाशन प्रारंभ किया

श्रीमती विजया बहन भावसार के नेतृत्व में प्रजामंडल का सहयोगी संगठन महिला मंडल स्थापित किया गया

जनता की राजनीतिक जागृति देखकर महारावल पृथ्वी सिंह ने वैधानिक सुधारों की घोषणा की

धारा सभा के चुनाव हुए कुल 45 सीटों में से 35 सीटों पर प्रजामंडल के उम्मीदवार निर्वाचित हुए

भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी को मुख्यमंत्री बनाया गया

इस प्रकार फरवरी 1948 में बांसवाड़ा का प्रथम लोकप्रिय मंत्रिमंडल स्थापित हुआ

जैसलमेर प्रजामंडल ( Jaisalmer Praja Mandal )

  • यहां की राजतंत्र का सर्वप्रथम विरोध,यहां के व्यापारियों ने 1896 में किया था। 1920 से यहां राष्ट्रीय भावना अंकुरित होने लगी। 12 फरवरी 1920 को प्रवासी जैसलमेर वासियोंने कुछ अन्य जातियों के सहयोग से महारावल के समक्ष एक मांग पत्र प्रस्तुत किया। जैसलमेर में जन जागृति लाने का श्रेय सागरमल गोपा को दिया जाता है।
  • जैसलमेर में रघुनाथ सिह मेहता की अध्यक्षता में 1932 में माहेश्वरी युवक मंडल की स्थापना की गई।m 1937-38 में शिव शंकर गोपा ,मदन लाल पुरोहित, लाल चंद जोशी आदि ने लोक परिषदकी स्थापना का प्रयास किया। जिसका महारावल ने दमन कर दिया। महारावल के दमन नीति के कारण संस्थापकों को जैसलमेर छोड़ना पड़ा।
  • 1940 में सागरमल गोपा ने जैसलमेर में गुंडा राज नामक पुस्तिका छपवाकर वितरित करवा दी थी। इस कारण उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई।
  • 3 अप्रैल 1946 को सागरमल गोपा पर तेल छिड़क कर जिंदा जला दिया गया था। 4 अप्रैल 1946 को सागरमल गोपा का देहांत हो गया। शहर में यह खबर फैला दी की गोंपा स्वयं ने अपने ऊपर तेल छिड़क कर आग लगा ली और आत्महत्या कर ली।
  • जनता की मांग के कारण गोपाल स्वरूप पाठक आयोग का गठन किया गया। आयोग द्वारा गोपा जी की मृत्यु को आत्महत्या करार दिया गया था
  • सागरमल गोपा की जेल में रहते हुए 15 दिसंबर 1945 को मीठालाल व्यास द्वारा जोधपुर में जैसलमेर राज्य प्रजा मंडल का गठन किया गया। जैसलमेर राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की जिससे से जन आंदोलन को और प्रखर बना दिया।
  • अगस्त 1947 में जैसलमेर के राजकुमार गिरधारी सिंह ने महाराजा जोधपुर के साथ मिलकर जैसलमेर को पाकिस्तान में शामिल करने की योजना बनाई थी। लेकिन भारत सरकार के प्रयत्नों से इस योजना को सफल नहीं होने दिया गया।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी महारावल का रूप राष्ट्रविरोधी ही रहा और पाकिस्तान में मिलने का विचारकरने लगा। इस प्रकार के उग्र वातावरण में जैसलमेर 30 मार्च 1949 को वृहत राजस्थानमें विलीन हो गया।

नोट – सागरमल गोपा ने “देश के दीवाने” ,”जैसलमेर में गुंडा राज” और “”रघुनाथ सिंह का मुकदमा”” पुस्तकें प्रकाशित करी थी

भरतपुर प्रजामण्डल ( Bharatpur Praja Mandal )

  • भरतपुर में स्वतंत्रता आंदोलन का श्रीगणेश जगन्नाथदास अधिकारी व गंगा प्रसाद शास्त्रीने किया था मेकेंजी कि दमनकारी नीति पुलिस अत्याचार एवं मौलिक अधिकारों पर लगाए गए प्रतिबंध के विरोध में 1928 में भरतपुर राज्य प्रजा संघकी स्थापना की गयी।
  • 1930 में जगन्नाथ कक्कड़ ,गोकुल वर्मा और मास्टर फकीरचंदआदि ने भरतपुर कांग्रेस मंडल की नींव डाली। जवाहर लाल नेहरू की प्रेरणा से सितंबर 1937में गोकुल चंद वर्मा, गोरी शंकर मित्तल आदि ने मिलकर भरतपुर कांग्रेस मंडल की स्थापना की।
  • हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के पश्चात और भरतपुर राज्य के महाराजा की छत्रछाया में लोकतांत्रिक प्रशासन की स्थापना के उद्देश्य से 1938 में श्री किशन लाल जोशी गोपी लाल यादव मास्टर आदित्येंद्र और युगल किशोर चतुर्वेदी के प्रयासों से भरतपुर राज्य प्रजामंडलकी स्थापना की गई।
  • गोपी लाल यादव को प्रजा मंडल का अध्यक्ष बनाया गया।  ठाकुर देशराज और पंडित रेवतीशरण शर्मा को उपाध्यक्ष बनाया गया।  किशन लाल जोशी को महामंत्री बनाया गया। भरतपुर प्रजामंडल को मान्यता नहीं मिलनेके कारण भरतपुर रियासत द्वारा इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
  • 1939 में महाराजा ब्रजेंद्र सिंह के राजसिंहासन ग्रहण करने के बाद ही शीघ्र प्रजामंडल और राज्य सरकार के बीच समझौता हो गया। इस समझौते के तहत 25 अक्टूबर भरतपुर प्रजामंडल का पंजीकरण भरतपुर प्रजा परिषद के नाम से कर दिया गया भरतपुर प्रजा परिषद के अध्यक्ष मास्टर आदित्येंद्र को बनाया गया।
  • भरतपुर प्रजा परिषद का प्रथम अधिवेशन 30 दिसंबर 1940 को जय नारायण व्यास की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। भरतपुर प्रजा परिषद का दूसरा अधिवेशन 23-24 मई 1945 को बयाना में हुआ। अंत में 1947के आंदोलन के बाद राज्य सरकार और प्रज्ञा परिषद में समझोता हो गया।
  • 3 अक्टूबर 1947 को भरतपुर के लक्ष्मण मंदिर पर आयोजित सभा में महाराजा ने लोकप्रिय मंत्रीमंडल बनाकर उसमें चार मंत्रियों को शामिल करने और 11 सदस्य की संविधान निर्मात्री समिति के गठन की घोषणा की। दिसंबर 1947 में भरतपुर में एक लोकप्रिय सरकारका गठन हुआ
  • दिसंबर 1947 को प्रजा परिषद के मास्टर आदित्येंद्र और गोपी लाल यादव को हिंदू महासभा के हरिदत्त शर्मा को और जमीदार किसान सभा के ठाकुर देशराज को मंत्रिमंडलमें शामिल किया गया 18 मार्च 1948 को भरतपुर का मत्स्य संघ में विलय हो गया।
  • जुगल किशोर चतुर्वेदी “दूसरे जवाहर लाल नेहरु” के नाम से प्रसिद्ध है। गोकुल वर्मा को शेर – ए-भरतपुर कहा जाता है।
  • करौली प्रभामण्डल ( Karauli PrajaMandal )
  • अप्रैल 1939 में प्रजा मण्डल की स्थापना की गई। करौली में राजनीतिक जागृति की शुरुआत करौली राज्य सेवक संघ के माध्यम से हुई।संघ के अध्यक्ष मुंशी त्रिलोकचन्द माथुर ने सितम्बर 1938 में प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी, अजमेर की एक शाखा करौली में स्थापित की थी। 1946 में चर्खा संघ के कार्यकर्ता चिरंजीलाल शर्मा प्रजामण्डल के अध्यक्ष बने।

धौलपुर प्रजामण्डल ( Dholpur PrajaMandal )

  • श्री ज्वालाप्रसाद जिज्ञासु और श्री जौहरीलाल इन्दु ने सन् 1934 में नागरिक प्रचारिणी सभा की स्थापना की। इसके अन्य कार्यकर्ता ओमप्रकाश वर्मा, रामदयाल, रामप्रसाद, बांकेलाल, केशवदेव, केदारनाथ आदि थे। 1936 ई. में धौलपुर में श्री कृष्ण दत्त पालीवाल के नेतृत्व में धौलपुर प्रजामण्डल की स्थापना की गई।

विशेषताएँ

तसीमों हत्याकांड – 11 अप्रैल , 1947

नायक

पहला शहीद- छतरसिंह परमार

दूसरा शहीद- ठाकुर पंचम् सिंह कुशवाहा (जो धौलपुर निवासी था)

आचार सुधारिणी सभा – धौलपुर में जन -जागृति का श्रेय यमुना प्रसाद वर्मा को दिया जाता है। धौलपुर में 1910 ई. में यमुना प्रसाद वर्मा द्वारा इस संगठन की स्थापना की गई।

झालावाड प्रजामण्डल ( Jhalwad PrajaMandal )

  • झालावाड़ में जन जागृति का कार्य श्याम शंकर ,अटल बिहारीके प्रयासों से प्रारंभ हुआ। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने 1919 में झालावाड़ में झालावाड़ सेवा समितिकी स्थापना की। मांगीलाल भव्य तनसुखलाल मित्तल मदन गोपाल जी रामनिवासआदि ने हाडोती मंडल की गतिविधियों को झालावाड़ में कुशलता से संचालन कर सार्वजनिक चेतना का कार्य किया।
  • 25 नवंबर 1946 को झालावाड़ प्रजामंडल का गठन किया गया। झालावाड़ प्रजामंडल का गठन मांगीलाल भव्य ने मदन गोपाल ,कन्हैया लाल मित्तल, मकबूल आलम और रतन लाल के साथ मिलकर किया था।
  • मांगीलाल भव्य को झालावाड़ प्रजामंडल का अध्यक्षऔर मकबूल आलम को इसका उपाध्यक्ष बनाया गया। इस प्रजामंडल को नरेश हरिश्चंद्र सिंह का सीधा समर्थन प्राप्त था।
  • अक्टूबर 1947 में नरेश हरिश्चंद्र ने सहर्ष लोकप्रिय मंत्री मंडल का गठन कर दिया। जो सरकार बनने पर प्रधानमंत्री बने थे। इस मंत्री मंडल में मांगीलाल भव्य और कन्हैया लाल को मंत्री बनाया गया। यह राजस्थान का अंतिम प्रजामंडल था।
  • यह एकमात्र प्रजामंडल था जिस से वहां के शासक नरेश हरिश्चंद्र का ( राज संरक्षण) समर्थन प्राप्त था।

अलवर प्रजामण्डल ( Alwar PrajaMandal )

  • अलवर में हरीनारायण शर्मा और कुंज बिहारी मोदी के रचनात्मक कार्यके द्वारा जनता में जागृति उत्पन्न करने का प्रयास किया गया। इन्होंने अलवर में अस्पृश्यता निवारण संघ ,वाल्मीकि संघ और आदिवासी संघ की स्थापना कर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की दशा सुधारने का प्रयास किया।
  • इसी समय अलवर सरकार ने बानसूर व थानागाजी तहसीलों में *लगान वृद्धिकर दी और  कई नए कर लगा दिए गए।
  • जब बानसूर व थानागाजी के किसानों ने कर देने से मना कर दिया तो राजा जयसिंह ने दोनों जगह सशत्र सैनिक भेज दिए। 14 मई 1925 को सैनिकों ने बिना पूर्व सूचना दिए गोलियां चला दी। परिणाम स्वरूप 15 व्यक्ति मारे गए और 250 घायल हो गए।
  • किसानो के क्रूर दमन से अलवर वासी अपनी सरकार से पहले ही नाराज थे। इस पर ब्रिटीश सरकार ने अलवर नरेश जयसिंह को 22 मई 1933 को अलवर से निकाल दिया था।
  • जेल से रिहा होते ही श्री कुंज बिहारी लाल मोदी और पंडित हरि नारायण शर्मा के प्रयत्नों से 1938 में अलवर प्रजामंडलकी स्थापना हुई। किंतु सरकार ने इस संस्था का पंजीकरण करना स्वीकार नहीं किया। 14 मई 1940 को उसके लिए पुन:प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया।
  • विवश होकर 1 अगस्त 1948 को सरकार ने इस प्रजामंडल का पंजीकरण किया। जनवरी 1944 में अलवर प्रजामंडल का पहला अधिवेशन श्री भवानी शंकर शर्मा की अध्यक्षतामें हुआ। इस सम्मेलन में सरकार की नीतियों की कटु आलोचना की गई और उत्तरदायी सरकार की मांग की गयी।
  • 1946 में प्रजामंडल ने किसानों की मांगों का समर्थन करके उन्हें भू-स्वामित्व देने के प्रस्ताव का समर्थन किया था। 17 दिसंबर 1947 को महाराजा ने 2 वर्ष के भीतर राज्य में उत्तरदायी शासन स्थापित करने की घोषणा की।
  • 1 फरवरी 1948को भारत सरकार ने अलवर राज्य का शासन अपने हाथ में ले लिया। मार्च 1948 में मत्स्य संघ मैं अलवर के विलय के साथ ही राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई।
  • अलवर प्रजामंडल की स्थापना 1938में हुई थी।लेकिन इस का प्रथम अधिवेशन 1944 में हुआ था। प्रजामंडल की स्थापना हरि नारायण शर्मा और कुंज बिहारी मोदी द्वाराकी गई थी। लेकिन इस संस्था के रजिस्ट्रेशन के बाद सरदार नत्थूमल( नत्थामल) इसके अध्यक्ष बने थे।

डूंगरपुर प्रजामण्डल ( Dungarpur PrajaMandal )

  • डूंगरपुर में जन जागृति करने का श्रेय गुरु गोविंद गिरी को तत्पश्चात भोगीलाल पंड्या को है 1919 ईस्वी में भोगीलाल पंड्या ने “आदिवासी छात्रावास” की स्थापना कर जनचेतना फैलाने का प्रयास किया 1929 में गौरी शंकर उपाध्याय में “सेवाश्रम” स्थापित कर खादी प्रचार किया तथा वैचारिक क्रांति फैलाने के लिए हस्तलिखित “सेवक” समाचार पत्र प्रकाशित किया।
  • 1935 ईस्वी में ठक्कर बापा की प्रेरणा से भोगीलाल पंड्या ने “हरिजन सेवा संघ” की स्थापना की। 1935 ईस्वी में ही शोभा लाल गुप्ता के नाम से आश्रम खोला माणिक्य लाल वर्मा ने 1935 ईस्वी में डूंगरपुर में “खांडलाई आश्रम” स्थापित कर भीलों में शिक्षा का प्रसार किया
  • 1935 ईस्वी में माणिक्य लाल वर्मा, भोगीलाल पंड्या और गौरी शंकर उपाध्याय ने “बागड़ सेवा मंदिर” की स्थापना कर जनजागृति की 1938 ईस्वी में भोगीलाल पंड्या ने “डूंगरपुर सेवा संघ” की स्थापना कर जनजातियों में जन चेतना जारी रखी
  • 26 जनवरी, 1944 ईस्वी को भोगीलाल पंड्या ने “डूंगरपुर प्रजामंडल” की स्थापना की। हरिदेव जोशी, गौरी शंकर उपाध्याय एवं शिवलाल कोटडिया इसके संस्थापक सदस्यों में से थे।
  • अप्रैल, 1946 में डूंगरपुर प्रजामंडल का प्रथम अधिवेशन भोगीलाल पण्ड्या के नेतृत्व में हुआ। जिसमे अन्य कार्यकर्ताओ के अलावा पंडित हीरालाल शास्त्री, मोहनलाल सुखाड़िया, और जुगल किशोर चतुर्वेदी ने भाग लिया।
  • 20 जून, 1947 को सेवा संघ द्वारा संचालित रास्तापाल की पाठशाला के अध्यापक सेंगाभाई के साथ क्रूर व्यवहार किया गया और उसे बचाने आए पाठशाला के संरक्षक नाना भाई खांट और छात्रा भील बालिका काली बाई की गोली मारकर हत्या कर दी।
  •  दिसंबर, 1947 में महारावल डूंगरपुर ने राज्य प्रबंध कारिणी सभा की स्थापना की, जिसमे गौरी शंकर उपाध्याय व भीखा भाई को प्रजामण्डल प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित किया गया।

बांसवाडा प्रजामण्डल

  • बांसवाड़ा में हरिदेव जोशी मणिशंकर जानी, भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी, लक्ष्मण दास, धूलजी भाई आदि द्वारा खादी प्रचार, हरिजनोद्धार,एवं भीलो की दशा सुधारने का कार्य किया गया। बांसवाड़ा में “चिमनलाल मालोत” द्वारा 1930 ईस्वी में “शांत सेवा कुटीर” की स्थापना की गई और “सूर्योदय पत्रिका” का प्रकाशन कर जन चेतना फैलाने का प्रयास किया गया।
  • भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी ने धूल जी ,मोतीलाल जाड़िया, चिमनलाल, सिद्धि शंकर आदि के साथ मिलकर दिसंबर, 1946 ईस्वी में बांसवाड़ा प्रजामंडल की स्थापना की इसका अध्यक्ष विनोद चंद्र कोठारी को बनाया गया
  • धीरे-धीरे प्रजामंडल में आदिवासी भी सक्रिय भाग लेने लगे। इनमें प्रमुख थे चिप के दीला भगत, छोटी सरकरान के सेवा मछार, छोटी तेजपुर के दीपा भगत आदि प्रजामंडल के सहयोगी संगठनों के रूप में महिला मंडल, विद्यार्थी कांग्रेस और स्वयं सेवक दल का गठन किया गया-
  • फरवरी, 1946 के तीसरे सप्ताह में नगर से बाहर सभा का आयोजन किया गया, लोगों ने धारा 144 का उल्लंघन करते हुए, 24 फरवरी, 1946 को प्रधानमंत्री मोहन सिंह मेहता के बंगले को घेर लिया। उपयुक्त आंदोलन में महिला संगठन के नेतृत्व में स्त्रियों ने भी 144 धारा तोड़कर जुलूस निकाला
  • फरवरी 1947 में प्रजामंडल का अधिवेशन हुआ, जिसमें राज्य में उत्तरदाई शासन की स्थापना करने की मांग की गई,। महारावल में व्यवस्थापिका का चुनाव करवाकर मंत्रिमंडल का गठन किया
  • 1948 ईस्वी में उपेंद्र त्रिवेदी के नेतृत्व में उत्तरदाई सरकार की स्थापना की गई। भूपेंद्र नाथ त्रिवेदी–मुख्यमंत्री, मोहनलाल त्रिवेदी–विकास मंत्री, नटवर लाल भट्ट—राजस्व मंत्री और चतर सिंह को जागीरदारों के प्रतिनिधि के रूप में लिया गया
  • परंतु यह मंत्रिमंडल 48 दिन तक ही कार्यरत रहा। राजस्थान के एकीकरण के समय, महारावल ने पुनः शक्ति प्राप्त करने का प्रयास किया, परंतु प्रजामंडल ने उसके प्रयास विफल कर दिए और बांसवाड़ा का राजस्थान संघ में विलय हो⚫

हाडोती प्रजामंडल

  • हाडोती कोटा और बूंदी को सम्मिलित रूप से हाडोती बोला जाता है  परंतु सबसे पहले बूंदी में तत्पश्चात कोटा में प्रजामंडल का गठन हुआ
  • कोटा में
  • पंडित नैनू राम शर्मा ने इसकी स्थापना की इन्होंने बेकार विरोधी आंदोलन चलाया 1934 में हाडोती प्रजामंडल की स्थापना की  1939 ईस्वी में पंडित अभिन्नहरी के साथ मिलकर कोटा राज्य प्रजामंडल की स्थापना की
  • 1941 में पंडित नैनू राम शर्मा की हत्या हो गई तब नेतृत्व अभिन्न हरि के पास आ गया तब उन्होंने 1 नवंबर 1941 में प्रजामंडल के दूसरे अधिवेशन की अध्यक्षता की 1942 में वह गिरफ्तार हो गए तब  1942 में प्रजामंडल के नए अध्यक्ष मोतीलाल चयन हुए
  • इन्होंने महारावल को पत्र भेजा और कहा कि आप ब्रिटिश सरकार से संबंध तोड़ ले उस समय किसानों और जनता में इतना आक्रोश था की प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं ने पुलिस को बैरकों में बंद कर के शहर कोतवाली पर कब्जा कर तिरंगा फहराया
  • करीब 2 सप्ताह तक कोटा के नगर प्रशासन पर जनता का कब्जा रहता है  ऐसा इतिहास दूसरी बार हुआ है की 2 दिन तक जनता ने प्रशासन को अपने हाथ में लिया पहली बार 1857 की क्रांति के दौरान हुआ
  • महारावल ने जब आश्वासन दिया कि सरकार दमन का सहारा नहीं लेगी गिरफ्तार किए गए कार्य करता रिहा कर दिये गए यद्यपि उत्तरदाई शासन का आश्वासन दिया गया परंतु कोई व्यवहारिक शासन नहीं हुआ
  • इस बीच स्वतंत्रता प्राप्त होने और संयुक्त राजस्थान बनने की प्रक्रिया शुरू होने से लोकप्रिय सरकार पद ग्रहण नहीं कर पाई

बूंदी जन आंदोलन

  • इसकी शुरुआत 1922 से मानी जाती है 1931 में बूंदी प्रजामंडल की स्थापना हुई स्थापना करने वाले कांतिलाल माने जाते हैं हालांकि इससे पहले पथिक और रामनारायण चौधरी ने वृद्धि और बेगार प्रथा के विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया था  प्रजामंडल ने उत्तरदाई शासन की स्थापना और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा की मांग को बार-बार उठाया
  • बूंदी के राजा ने 1935 में सार्वजनिक सभाओं पर प्रतिबंध लागू किया प्रजामंडल ने प्रशासनिक सुधारों की मांग की  1947 ईस्वी में प्रजामंडल के अध्यक्ष ऋषि दत्त मेहता बंदी बनाकर अजमेर भेज दिए गए उनकी अनुपस्थिति में ब्रिज सुंदर शर्मा ने नेतृत्व संभाला
  • प्रजामंडल को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया मेहता जी ने 1944 में अपनी रिहाई की बात बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना की
  • जिसे कुछ समय बाद मान्यता मिल गई  महाराज ने बदलती परिस्थितियों को भांपते हुए संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया जिसमें प्रजा मंडल के सदस्य मनोनीत किए गए
  • नवनिर्मित संविधान पारित होने से पहले ही बूंदी राजस्थान में विलीन हो गय इस प्रकार कोटा और बूंदी के शासकों ने जनता के साथ उतना अच्छा नहीं किया इन लोगों ने भी अंग्रेजों का भरपूर साथ दिया और जनता के साथ दमनकारी नीतियों का पालन करते रहे परंतु जब भारत आजाद हो गया तब इन्होंने यू टर्न ले लिया

प्रतापगढ़ प्रजामण्डल

  • प्रतापगढ़ में 1931-32 में स्वदेशी वस्त्र,खादी प्रचार और मद्यनिषेध का प्रचार-प्रसार कर जन जागृति फैलाई थी। इसके लिए मास्टर रामलाल, राधावल्लभ सोमानी, रतन लाल के नेतृत्व में प्रतापगढ़ में आंदोलन किया गया।
  • प्रतापगढ़ में जन जागृति फैलाने का मुख्य कार्य अमृत लाल पायक ने किया था। हरिजन उत्थान के लिए ठक्कर बप्पा की प्रेरणा से 1936में अमृत लाल पायक में प्रतापगढ़ में हरिजन पाठशालाकी स्थापना की थी।
  • 1945 में चुन्नी लाल प्रभाकर और अमृत लाल पायक के नेतृत्व में प्रतापगढ़ प्रजामंडल की स्थापना की गई। 1947 को महारावल ने प्रतापगढ़ मे लोकप्रिय मंत्री मंडल के गठनकी घोषणा की।  2 मार्च 1948में प्रजामंडल के 2 प्रतिनिधि माणिक्य लाल और अमृत लाल पायक मंत्रिमंडल में ले लिए गए।
  • 25 मार्च 1948 को प्रतापगढ भी  राजस्थान संघ का अंग बन गया।
  • किशनगढ प्रजामंडल किशनगढ़ में कांति चंद्र चौथाणी ने 1930 में उपचारक मंडलकी स्थापना की थी। किशनगढ़ राज्य में श्री कांति चंद्र चोथानी के प्रयासों से 1939 में प्रजामंडल की स्थापना की गई। इस प्रजा मंडल का अध्यक्ष श्री जमाल शाह को बनाया गया और इसका मंत्री महमूद को बनाया गया था।
  • राज्य की ओर से प्रजामंडल की स्थापना का कोई विरोध नहीं किया गया। 1942 में किशनगढ़ प्रजामंडल ने चुनाव लड़ा और बहुमत प्राप्त किया। महाराजा किशनगढ़ ने 15 अगस्त 1947 से पूर्व एक सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर कर किशनगढ़ को भारतीय संघ का एक अंग बना दिया था।
  • किशनगढ़ भी 1948 में राजस्थान संघ में विलय हो गया था।

प्रजामंडल   संस्थापक     समय

जयपुर –कर्पूर चंद्र पाटली —— 1931

बूंदी —- कांतिलाल ———–1931

हाडोती(kota)–नैनू राम शर्मा —–1934

मारवाड़— भंवर लाल सराफ ——1934

बीकानेर —मगाराम वैद्य ——–1936

धौलपुर — कृष्णदत्त पालीवाल —- 1936

Mewar— माणिक्य लाल वर्मा —-1938

भरतपुर — गोपी लाल यादव —– 1938

अलवर —- हरी वाराध्य शर्मा —–1938

शाहपुरा —रमेश चंद्र ओझा ——1938

सिरोही —– गोकुल भाई भट्ट —-1939

Karoli —-त्रिलोक चंद्र माथुर —-1939

किशनगढ़ —कांतिलाल चौधरी —-1939

कुशलगढ़ —भंवरलाल निगम —- 1942

डूंगरपुर —– भोगीलाल ——–1944

जैसलमेर —-मीठालाल व्यास —-1945

प्रतापगढ़ —— चुन्नीलाल ——1945

झालावाड़ — मांगीलाल भव्य —–1946

Banswada — भूपेंद्र सिंह पंडित — 1943

राजस्थान में प्रजामंडल के महत्वपूर्ण तथ्यलेख को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद, अगर आप हमारे व्हात्सप्प ग्रुप में जुड़ना चाहते है तो यहाँ पर क्लिक करे – क्लिक हियर

Leave a Comment