सवाई जयसिंह एवं वीर दुर्गा दास का जीवन परिचय

सवाई जयसिंह ( Sawai Jaisingh )

जन्म – 3 सितंबर 1688

आमेर शासक बने – 19 दिसंबर 1699

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औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम व आजम के मध्य 1707 ईस्वी में जाजऊ के मैदान उत्तर प्रदेश में युद्ध हुआ | जिसमें सवाई जयसिंह ने आजम का साथ दिया| जय सिंह के भाई विजय सिंह ने मुअज्जम का साथ दिया | जीत मुअज्जम की हुई|

मौजमने विजय सिंह को आमेर का शासक बना दिया और आमेर का नाम इस्लामाबाद और बाद में मोमिनाबाद कर दिया| आमेर के शासक सवाई जयसिंह को उसने सूबेदार नियुक्त किया |

जय सिंह ने आमिर की जगह जयपुर को कछवाहा राजवंश की राजधानी बनाया | इससे पूर्व जयपुर के इस स्थान पर एक शिकार होदी स्थिति थी इसी होदी को सवाई जयसिंह ने बादल महल का रूप दे दिया और जयपुर शहर के निर्माण की शुरुआत की|

सवाई जयसिंह या द्वितीय जयसिंह अठारहवीं सदी में भारत में राजस्थान प्रान्त के नगर/राज्य आमेर के कछवाहा वंश के सर्वाधिक प्रतापी शासक थे। सन 1727 में आमेर से दक्षिण छः मील दूर एक बेहद सुन्दर, सुव्यवस्थित, सुविधापूर्ण और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर आकल्पित नया शहर ‘सवाई जयनगर’, जयपुर बसाने वाले

नगर-नियोजक के बतौर उनकी ख्याति भारतीय-इतिहास में अमर है।

सवाई जयसिंह ने 1725 ईस्वी में नक्षत्र की गति की गणना करने के लिए एक शब्द सारणी का निर्माण करवाया|

जयसिंह ने ज्योतिष विद्या जयसिंह कारिका नामक का ग्रंथ लिखा | काशी, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा और जयपुर में, अतुलनीय और अपने समय की सर्वाधिक सटीक गणनाओं के लिए जानी गयी वेधशालाओं के निर्माता, सवाई जयसिह एक नीति-कुशल महाराजा और वीर सेनापति ही नहीं, जाने-माने खगोल वैज्ञानिक और विद्याव्यसनी विद्वान भी थे। उनका संस्कृत , मराठी, तुर्की, फ़ारसी, अरबी, आदि कई भाषाओं पर गंभीर अधिकार था।

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Post Titleसवाई जयसिंह एवं वीर दुर्गा दास का जीवन परिचय
Post Short Descriptionसवाई जयसिंह एवं वीर दुर्गा दास का जीवन परिचय के बारे में चर्चा की गई है, जो आपके आने वाली प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है |
Post Date22/02/2022
PublisherChirag Suthar
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सवाई की उपाधि

यदुनाथ सरकार के अनुसार “… इनके पिता के समय से ही दिल्ली-बादशाह इनको अपनी सैनिक ‘सेवा’ में लेने के लिए हेतु दक्षिण में बुलाना चाहते थे। परन्तु राजा विष्णुसिंह अपने पुत्र को दक्षिण में नहीं भेजना चाहते थे।

लेकिन बादशाह के ज्यादा दबाव देने पर ई० 1698 में ये महाराष्ट्र (दक्षिण) गये। वहां पहली भेंट में बादशाह औरंगजेब ने इनकी तीव्र बुद्धि देख कर इन को ‘सवाई’ कहा था। तभी से इनके नाम के पहले सवाई की उपाधि लग गई, जो अभी तक जयपुर के भूतपूर्व राजाओं के नाम के साथ जुड़ी हुई है।

सवाई जयसिंह अंतिम हिंदू शासक था जिसने 1740 ईस्वी में कई यज्ञ करवाए जल महलों का निर्माण करवाया |21 सितंबर 1743 में जय सिंह की मृत्यु आमेर में हुई हो गई|

वीर दुर्गादास ( Veer Durgadas )

दुर्गादास, मारवाड़ शासक महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री आसकरण राठौड़ के पुत्र थे। उनकी माँ अपने पति और उनकी अन्य पत्नियों के साथ नहीं रहीं और जोधपुर से दूर रहीं। अतः दुर्गादास का पालन-पोषण लुनावा नामक गाँव में हुआ। इनका जन्म सालवाॅ कल्ला में हुआ था

भारत के मारवाड़ क्षेत्र के राठौड़ राजवंश के एक मंत्री थे। वे महाराजा जसवंत सिंह के निधन के बाद कुँवर अजित सिंह के सरांक्षक बने।

दुर्गादास ने इस देश का पूर्ण इस्लामीकरण करने की औरंगजेब की साजिश को विफल कर हिन्दू धर्म की रक्षा की थी इसी वीर दुर्गादास राठौर के बारे में रामा जाट ने कहा था कि “धम्मक धम्मक ढोल बाजे दे दे ठोर नगारां की,, जो आसे के घर दुर्गाो नहीं होतो,. हो जाती सारां की

आज भी मारवाड़ के गाँवों में लोग वीर दुर्गादास को याद करते है कि

“माई ऐहा पूत जण जेहा दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश”

हिंदुत्व की रक्षा के लिए उनका स्वयं का कथन

“रुक बल एण हिन्दू धर्म राखियों”

अर्थात हिन्दू धर्म की रक्षा मैंने भाले की नोक से की – इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होने सारी उम्र घोड़े की पीठ पर बैठकर बिता दी।

उनके बारे में इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने कहा था कि  “उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुगलों की शक्ति उनके दृढ निश्चय को पीछे हटा सकी,बल्कि वो ऐसा वीर था जिसमे राजपूती साहस और कूटनीति मिश्रित थी”.

वीर दुर्गादास का निधन 22 नवम्बर, सन् 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था ।

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