गुप्तकाल (Gupt Kal) | गुप्त साम्राज्य | गुप्त वंश | गुप्तकालीन भारत

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गुप्त काल ( Gupt )

गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अंत मे प्रयाग के निकट कोशाम्बी में हुआ। गुप्त वंश का संस्थापक श्री गुप्त था। श्री गुप्त का उत्तराधिकारी घटोत्कच हुआ।

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गुप्त वंश का महान सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम था।यह 320 ई.में गद्दी पर बैठा।इसने लिच्छवी राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया।इसने महाराजाधीराज की उपाधि धारण की।

गुप्त संवत(319-320ई.)की शुरुआत चन्द्रगुप्त प्रथम ने की। चन्द्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी समुन्द्रगुप्त हुआ।जो 335 ई.में राज गद्दी पर बैठा।इसे भारत का नेपोलियन भी कहते है। समुन्द्र गुप्त का दरबारी कवि हरिषेण था,जिसने इलाहबाद प्रशस्ती लेख की रचना की।

समुन्द्र गुप्त विष्णु का उपासक था। समुन्द्र गुप्त ने अश्वमेधकर्ता की उपाधि धारण की। समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी था।ऐसा अनुमान उनके सिक्को पर पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाये जाने पर लगाया जाता है। समुद्र गुप्त ने विक्रमक की उपाधि धारण की थी।इसे कविराज भी कहा जाता था।

समुद्र गुप्त का उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त -2 हुआ। जो 380 ई. में राजगद्दी पर बैठा। चन्द्र गुप्त 2 के शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फ़ाहियान भारत आया।

शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त ने चांदी के सिक्के चलाये। नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने की थी शकन्दगुप्त ने गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण किया।

सकन्दगुप्त ने प्रंदत को सौराष्ट्र का गवर्नर नियुक्त किया था। स्कंदगुप्त के समय ही हूणों का आक्रमण शुरू हो गया था। आन्तिम गुप्त शासक विष्णुगुप्त था।

गुप्तकालीन व्यवसायी समाज ( Guptkalin Business Society )

श्रेणी :- समान व्यवसायियों का संगठन ।

निगम :- शिल्पियों का संगठन ।

पट्टवाय :- रेशमी वस्त्र बुनने वाले जुलाहे ।

मृत्तिकार :-कुंभकार (कुम्हार )।

अंतेवासी :- आचार्य के निर्देशन में गुरुकुल में ही रहकर शिक्षार्जन करने वाला।

साहूकार :– ब्याज की दर पर रुपया उधार लेने वाला।

गन्धव्य :- इत्र बनाने वाला गन्धी ।

कासवन :– नाई ।

चम्मचाह :- चमड़े का काम करने वाला।

कंकार :- बर्तन गढने वाला कसेरा ।

भिल्ल :- आखेट कर जीविका उपार्जन करने वाला वर्ग ।

गुआर :- पशुओं को चराने वाले ग्वाले।

छिप्प छीपा वर्ग ।

अंतपीलक :- तेल निकलने वाले तेली।

भारत पर हूणों का आक्रमण ( Invasion of the Hunas on India )

हूण मध्य एशिया की एक खानाबदोश जाति थी। यह जाति अपने समय की सबसे बर्बर जातियों में गिनी जाती थी। इस जाति ने उत्तर-पश्चिमी एशिया में अपने को सुदृढ़ अवस्था में स्थापित कर लिया था।

हूण के राजा तोरमन ने 503 ईस्वी में गुप्त राजाओं को हराकर राजस्थान में अपना राज्य स्थापित किया था। तोरमन के पुत्र मिहिरकुल ने छठीं शताब्दी में बाड़ोली(चित्तोड़गढ़) में शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।

मेवाड़ के गुहिल शासक अल्लट ने हूण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया। हूणों ने पंजाब और मालवा की विजय करने के बाद भारत में स्थाई निवास बना लिया था।

घुमक्कड़ कबीला ( Stroller clan )

ईसवी सन के प्रारम्भ से सौ वर्ष पहले और तीन-चार सौ वर्षों बाद तक विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक घुम्मकड़ और लड़ाकू क़बीलों का अस्तित्व था, जैसे ‘नोमेड’, ‘वाइकिंग’, ‘नोर्मन’, ‘गोथ’, ‘कज़्ज़ाक़’, ‘शक’ और ‘हूण’ आदि। हूणों ने दक्षिण-पूर्वी यूरोप और उत्तर-पश्चिम एशिया में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। रोम के साम्राज्य को तहस-नहस करने में हूणों का भी बहुत बड़ा हाथ था।

अटिला हूण ने अपना साम्राज्य चौथी-पाँचवी शताब्दी के दौरान यूरोप में स्थापित किया। मध्य एशियामें यह छठी-सातवीं शताब्दी में बस गए। कॉकेशस से हूणों ने फैलना शुरू किया।

भारत पर आक्रमण ( India Invasion )

उत्तर-पश्चिम भारत में हूणों द्वारा तबाही और लूट के अनेक उल्लेख मिलते हैं गुप्त काल में हूणों ने पंजाब तथा मालवा पर अधिकार कर लिया था। तक्षशिला को भी क्षति पहुँचायी

भारत में आक्रमण हूणों के नेता तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल के नेतृत्व में हुआ मथुरा, उत्तर प्रदेश में हूणों ने मन्दिरों, बुद्ध और जैन स्तूपों को क्षति पहुँचायी और लूटमार की। मथुरा में हूणों के अनेक सिक्के भी प्राप्त हुए हैं।

हूणों ने पांचवीं शताब्दी के मध्य में भारत पर पहला आक्रमण किया था। 455 ई. में स्कंदगुप्त ने उन्हें पीछे धकेल दिया था, परंतु बाद के आक्रमण में 500 ई. के लगभग हूणों का नेता तोरमाण मालवा का स्वतंत्र शासक बन गया।

उसके पुत्र ने पंजाब में सियालकोट को अपनी राजधानी बनाकर चारों ओर बड़ा आतंक फैलाया। अंत में मालवा के राजा यशोवर्मन और बालादित्य ने मिलकर 528 ई. में उसे पराजित कर दिया।

लेकिन इस पराजय के बाद भी हूण वापस मध्य एशिया नहीं गए। वे भारत में ही बस गए और उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया।

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